म.प्र. आवास नियंत्रण अधिनियम, 1961 की धारा 12(1)(a) के तहत, एक बार भी किराया न देना बेदख़ली का आधार बनता है।
लीगल जानकारी बुलेटिन मकान मालिक बनाम किरायेदार – किराया न देने पर बेदख़ली का स्पष्ट आदेश फैसला संख्या: SA-1222/1999 न्यायाधीश: द्वारका धीश बंसल जगह: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय मुद्दा : क्या किरायेदार, जो कोर्ट द्वारा तय किया गया किराया समय पर जमा नहीं करता, उसे मकान खाली करने के लिए मजबूर किया जा सकता है ? मामले की पृष्ठभूमि : मकान मालिक (वादी) ने किरायेदार के खिलाफ मुकदमा किया क्योंकि वह सितंबर 1982 से किराया नहीं दे रहा था। मालिक का दावा : ₹50 प्रति महीना किराया। किरायेदार की दलील : ₹12 किराया था और वह हाउस टैक्स भरता रहा, जो किराए में समायोजित होना चाहिए । कोर्ट का निर्णय : 1. निचली अदालतें : मालिक का मुकदमा खारिज कर दिया । 2. उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया : ट्रायल कोर्ट ने 1986 में ₹12 महीना अस्थायी किराया तय किया था । किरायेदार ने यह किराया जमा ही नहीं किया । हाउस टैक्स का कोई स्पष्ट समझौता साबित नहीं हुआ । अंतिम आदेश : निचली अदालतों का निर्णय रद्द । किरायेदार को 2 महीने में मकान खाली करने का आदेश । ₹12 प्रति माह के हिसाब से बकाया किराया भी चुकाना होगा । महत्वपूर्ण कानूनी बातें : म.प्र. आवास नियंत्रण अधिनियम, 1961 की धारा 12(1)(a) के तहत, एक बार भी किराया न देना बेदख़ली का आधार बनता है। यदि कोर्ट किराया तय कर दे (प्रोविजनल रेंट), तो उसे जमा करना अनिवार्य होता है। आपके लिए सलाह : यदि आप किरायेदार हैं और किसी प्रकार का विवाद है, तो भी कोर्ट के आदेश अनुसार किराया जरूर जमा करें । वरना मकान मालिक को आपके विरुद्ध बेदख़ली की डिक्री मिल सकती है ।